लिखने से पहले- थोड़ा बदलने की कोशिश करिए -ऋतु मिश्र

आमतौर पर यह माना जा रहा है या जो भी छापा या लिखा जा रहा है। उसमें यह संकेत होता है कि विकासात्मक पत्रकारिता का मतलब बड़े-बड़े विद्वानों के लेख छापना। भारी भरकम फैक्ट, आंकड़े या ढेर सारे एक्सपर्ट के बयान। बुरा मत मानिए यह सब एक आम आदमी के लिए बेहद उबाउ और बेकार ही साबित होता है। विकासात्मक पत्रकारिता के नाम पर अखबार मालिक या ज्यादातर संपादकों के मन में भी यह बात रहती है कि कोई भी सामाजिक मुद्दा उठाना है तो एक पूरा पेज पांच एक्सपर्ट्स की राय से भर दिया जाए। इससे केवल वो एक्सपर्ट्स कुछ उससे जुड़े लोग और अखबार की कुछ साख बनी रहती है, पर आप सर्वे करा लीजिए आम आदमी ने उस पेज की बमुश्किल कुछ लाइनें पढ़ी होंगी। वह उस भाषा, उन आंकड़ों को देखकर ही पीछे हट जाता है।

हमे विकास से जुड़ी खबरें और उनके प्रस्तुतिकरण को कमर्शियल फिल्मों की स्क्रिप्ट की तरह लेना होगा। हमें उसे बॉक्स ऑफिस यानी कि टारगेट ग्रुप की हिट खबर बनानी होगी। इसके लिए हमें उसमें वो सारी चीजें जोड़नी होगी जो एक कमर्शियल फिल्म की स्क्रिप्त में रहती है। आप रंग से बसंती देखिए सुपर हिट रही। इसकी तुलना आप शहीद भगतसिंह बनाइए, गिने-चुने दर्शक मिलेंगे। रंग दे बसंती में थीम वही है देशभक्ति पर प्रस्तुति का तरीका बदला है। हमें भी वही करना है। खबरों को लिखते वक्त कुछ नई चीजें हमें ध्यान रखनी होगी। मैं जानती हूं आप में से ज्यादातर लोगों को पहली नजर में यह ठीक नहीं लगेगा। हमें विकास से जुड़ी खबरों में भी थोड़ा सा मसाला लगाना होगा। यानी उसे इस ढंग से पेश करना होगा कि आपका टारगेट समूह उसे पढ़ने को आकर्षित हो। 'न्यूज टुडे' ने शाम का अखबार होने के बावजूद अपने सामाजिक सरोकार को बनाए रखा। हमेशा सेनसेशन के बजाए इंफार्मेशन पर जोर दिया।
इसके लिए उसमें हमने अखबार की खबरों में ये चीजें डाली-
एक्शन
इमोशन
रिलेशन
डेफिनेशन
रिलीजन
ड्रामा
फीयर
फैक्ट
हेडलाइन और फोटोग्राफ्स
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एक्शन
- खबर पूरी तरह एकदम लाइव दिखे, पढ़ने वाले को लगे ये मेरे आसपास की या मेरी ही बात चल रही है।

उदाहरण- आप हेडिंग दे दीजिए सिगरेट पीने से जान को खतरा, कम लोग पढ़ेंगे, आप लिखिए- ऐसे छुटती है काफिर मुंह की लगी- ज्यादातर लोग रूकेंगे, पढ़ेंगे।


इमोशन- कोई ऐसी केस स्टडी हो जिसमें पढ़ने वाली आंखों में आंसू निकल आए।
रिलेशन- जब आप स्टोरी को एक पारिवारिक टच देंगे। रिश्तों को जोड़ेंगे। सीधे-सीधे बताएंगे कि शराब पीकर गाड़ी चलाएं पर एक बार अपने पीछे देख लें, जिन्हें बेसहारा छोड़कर जा रहे हैं, उनके बारे में सोचे। आपकी मौत के बाद आपकी बीवी क्या करेगी, बच्चे किसके सहारे जिएंगे।


डेफिनेशन- इस सबके बीच आप एक बॉक्स तुरंत उस बीमारी की या समस्या की वैज्ञानिक या सामाजिक परिभाषा लगा दीजिए। आदमी एक बहाव में उसे भी पढ़ जाएगा। इसके विपरीत आप स्टोरी उसकी परिभाषा से शुरू करेंगे तो वह वहीं पर पढ़ना छोड़ देगा।


रिलीजन- आप किसी भी मुद्दे को थोड़ा सा धार्मिक टच दे दीजिए फिर देखिए उसका असर। आप ऐसे कहेंगे कि पॉलीथिन का इस्तेमाल मत करिए। कोई ध्यान नहीं देगा, आप लिखिए भगवान को जहर लगा प्रसाद मत चढ़ाइए। देखिए मंदिरों के बाहर पॉलिथीन बैग्स में प्रसाद खरीदने से लोग मना करने लगेंगे। आप लिखिए प्लास्टर ऑफ पेरिस की गणेश प्रतिमा से नदियाें में प्रदूषण फैलता है कोई नहीं मानेगा। आप लिखिए विसर्जन के बाद आपके गणेश जी खंडित होकर पड़े रहते हैं, इससे आपकी दुआ कबूल नहीं होगी। मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कीजिए। देखिए असर।

ड्रामा- कुछ काल्पनिक भयावहता या भविष्य की अच्छाइयां बताइए। पेड़ वाले पेज पर सिलेंडर।


यह आलेख विकास संवाद (सचीन जैन) के बैनर तले आयोजित राष्ट्रीय मीडिया संवाद में उनके वक्तव्य पर आधारित है। रीतू मिश्रा राजस्थान पत्रिका के अखबार समुह का अखबार समुह का न्यूज़ टुडे सांध्य दैनिक, इन्दौर की सम्पादक हैं.

 

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