भारतीय प्रेस परिषद् में शिकायत करने की विधि

1. समाचारपत्रों के विरुध्द शिकायत
कोई भी व्यक्ति, किसी समाचारपत्र के विरुध्द पत्रकारिता के औचित्य तथा रुचि में मान्य नैतिक सिध्दांतों के व्यवधान के विरुध्द प्रेस परिषद् में शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायतकर्ता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे उस समाचार से परिवेदित अथवा सीधे सम्बध्द हो। आरोपित व्यवधान समाचारपत्र के किसी समाचार अथवा वक्तव्य के प्रकाशन, अप्रकाशन अथवा अन्य सामग्री जैसे व्यंगचित्र, चित्र, छायाचित्र, मनोरंजन सामग्री अथवा विज्ञापनों के रूप में हो सकते हैं। जनता में से कोई भी व्यक्ति पत्रकार हो अथवा स्वतंत्र पत्रकार। किसी समाचार अधिनियम द्वारा प्रकाशित समाचार, जो किसी भी माध्यम से प्रसारित किया गया हो, के विरुध्द भी शिकायत की जा सकती है।
प्रेस परिषद् (जांच प्रक्रिया) विनिमय, 1979 की धारा 3 (1) के अंतर्गत परिषद् में शिकायत दर्ज करने हेतु समय सीमा निर्धारित की गई है। समाचारपत्रों/पत्रिकाओं में किसी सामग्री के प्रकाशन/अप्रकाशन अथवा सम्पादक/श्रमजीवी द्वारा व्यावसायिक अनाचरण के विरुध्द शिकायत के लिए 4 माह की समय सीमा का प्रावधान है। निहित अवधि के पश्चात निवेशित परिवाद के अनुपालन में हुए विलम्ब का उचित कारण बताते हुए क्षमायाचना की जा सकती है जिसे अध्यक्ष महोदय द्वारा संतुष्ट होने पर क्षमा किया जा सकता है।
प्रथमत: सम्पादक का ध्यानाकर्षण
जांच विनियमों के अंतर्गत यह आवश्यक है कि शिकायतकर्ता, समाचारपत्र के सम्पादक को लिखकर उनका ध्यान प्रथमत: पत्रकारिता नीति अथवा अरुचि की आक्षेपित व्यवधान से सम्बध्द समाचार की ओर आकृष्ट करें। ऐसे पूर्व संदर्भ किसी विषय को प्रथम दृष्टांत में निपटने का अवसर प्रदान करते हैं। यह नियम आवश्यक है, क्योंकि यह सम्पादक को दोषारोपण के परिचय अथवा शिकायत के विवरण से अवगत करवाता हो। यह विदित है कि कुछ मामलों में शिकायतकर्ता को असत्य सूचना प्राप्त हुई हो अथवा तथ्यों का अपनिरुपण किया गया हो। दूसरी ओर, यह एक अनवधान त्रुटि का मामला हो सकता है जिसे सम्पादक स्वीकार और संशोधित करने हेतु तत्पर हों, यदि शिकायतकर्ता संतुष्ट हो तो मामला वहीं समाप्त हो सकता है।
जहां, समाचारपत्र को लक्षित किये जाने के पश्चात कोई व्यक्ति शिकायत को आगे बढ़ाने की इच्छा रखता है, उसे सम्पादक के साथ हुए पत्र व्यवहार की प्रतियां भी शिकायत के साथ संलग्न करनी चाहिए, यदि सम्पादक की ओर से कोई उत्तर प्राप्त न हो तो यह तथ्य शिकायत में उल्लेखित करना चाहिए।
शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत में उस समाचारपत्र, सम्पादक अथवा पत्रकार का नाम तथा पता लिखना चाहिए जिसके विरुध्द शिकायत की गई हो। शिकायत के साथ प्रकाशित समाचार की मूल कतरन या उसकी स्वत: प्रमाणित प्रतिलिपि अंग्रेजी अनुवाद सहित यदि वह किसी अन्य भाषा में हो, भी प्रेषित की जानी चाहिए। शिकायतकर्ता को लिखना चाहिए कि शिकायती समाचार अथवा प्रकाशित सामग्री किस प्रकार आपत्तिजनक है। उन्हें अन्य सम्बध्द विवरण भी, यदि कोई हो, तो निवेशित करना चाहिए।
किसी सामग्री के अप्रकाशन की शिकायत के मामले में शिकायतकर्ता को लिखना चाहिए कि उनसे किस प्रकार पत्रकारिता नीति का उल्लंघन हुआ है।
उद्धोषणा
परिषद किसी ऐसे मामले पर विचार नहीं करती जो न्यायालय में विचाराधीन हो। शिकायतकर्ता को घोषणा करनी होगी कि अपनी सम्पूर्ण जानकारी तथा विश्वास के अनुसार उन्होंने परिषद् के समक्ष सम्पूर्ण सम्बध्द तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं तथा शिकायत में कथित किसी विषय के संबंध में किसी न्यायालय में कोई मामला लम्बित नहीं है। एक अन्य घोषणा करना भी आवश्यक हैकि ''परिषद द्वारा जांच की अवधि में शिकायत में कथित मामला न्यायालय की किसी कार्यवाही का विषय बन जाता है तो वे इसकी सूचना परिषद् को देंगे।''
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2. प्रेस की स्वतंत्रता के अतिक्रमण के विरुध्द शिकायत
समाचारपत्र, पत्रकार अथवा कोई भी संस्थान अथवा व्यक्ति, केंद्रीय अथवा राज्य सरकार अथवा किसी संगठन अथवा व्यक्ति के विरुध्द प्रेस की स्वतंत्र कार्यवाही में हस्तक्षेप, प्रेस की स्वतंत्रतापर अतिक्रमण के विरुध्द शिकायत कर सकता है। ऐसी शिकायत में कथित अतिलंघन का संपूर्ण विवरण इस घोषणा के साथ होना चाहिए कि मामला न्यायालय में लंबित नहीं है, जिस पर परिषद् से पूर्वोल्लिखित जांच प्रक्रिया के अनुसरण में कार्य करेगी।
परिषद् द्वारा व्यक्त विचार दो महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं, अभिधानत: (1) प्रेस की स्वतंत्रता का दुरुपयोग, किसी का ध्यान आकृष्ट किये बिना अथवा तब तक सिध्द नहीं हो सकता जब तक कि उस ओर ध्यान आकृष्ट न किया जाए अथवा विरोध के बिना घटित नहीं हो सकता तथा (2) प्रेस को स्वयं के हित में अश्लील अथवा अन्य आपत्तिजनक लेख प्रकाशित नहीं करने चाहिए अर्थात ऐसे लेखन जो स्वयं प्रेस सहित गठित परिषद् जैसी किसी निष्पक्ष निर्णायक समिति द्वारा पत्रकारिता नीतियों के मान्यता प्राप्त मानकों से निम्न स्तर के माने गए हैं क्योंकि इससे प्रेस की अत्यधिक बहुमूल्य स्वतंत्रता का ही क्षय होगा।

 

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